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रूंख सतसई

रसा बीच  पड़ियो रियौ, बिन पांणी रै भेल।
पथ जीवण द्वुम पावियौ, घर पांणी रै मेल।।102।।

खेलै रूसै खावतौ, गरबै घरणी गोद।
बालक द्वुम बरताव सूं, मन वसुधा रै मोद।।103।।

पुचकारै घर प्रेम सूं, रूस्यां बालक रुंख।
बिन मान्यां फटकार बल, चेतावै वा चूक।।104।।

ऊपरला मन सूं इला, जोरां रोस जताय।
खिमता वाली घर खरी, ममता वस मुलकाय।।105।।

लाली घर रै लोयणां, रे जोवै जद रूंख।
चिपकै गोद्यां जोयचख, टग टग औ हिव टूक।।106।।

सबसूं बड संसार मां, ममता कारण मात।
खमा करै जो खलक मां, औलादां उतपात।।107।।

भाव अलूणौ ना बसै, वसुधा रै दरबार।
रोम रोम खुस रूंख़ड़ौ, नैंण सलूण निहार।।108।।

पाबासर हंसां बिना, बिन झंकारी बाग।
सुखमा कीकर सामपै, तरवर बिना तड़ाग।।109।।

हीणौ टोली हिरणियौ, वसुधा रूंख विहूण।
सत विहूण फोरी समझ, कहवै पाछा कूण।।110।।

त्यार हुवौ सुणबा तरू, निवै प्रेरणा नेस।
दिल सूं लागी देवबा, अवनी भल उपदेस।।111।।

आदरकम व्है आंततां, ऊगंते प्रभ और।
ऊग्या सो तौ आंतसी, तरवर जीवण तौर।।112।।

राखै सगला ही रसा, स्वारथ काज सनेव।
स्वारथ बिना संसार मां, खेरौ करै न खेव।।113।।

दुमनौ क्यूं दुख देखइयां, सुख मा गरब न सीख।
विपदा संकट मां विटप, दिल राखौ दाढ़ीक।।114।।

बिना धाप दुख वापरै, फसियां स्वारथ फेंट।
भेट मिलै सो भाग री, पिट्टू बणौ न पेट।।115।।

ओरां खातर आपणौ, तन धन देवै त्याग।
अमर रहै घर उपरै, इसड़ा रौ अनुराग।।116।।

भलपण रै बरताव सूं, हिलमिल रखणौ हेत।
आछां हंदै आसरै, चेतै दुरबल चेत।।117।।

दुरबल पर कणी दया, निबलां राखौ नेह।
जीवै पर-उपकार जग, द्वुम सरवर रिख देह।।118।।

नाजोगां रै कुण नखै, जगती बणबा जोग।
जोगां रौ इण जगता मां,लहै आसरौ लोग।।119।।

खावै भांगै खिडवै, फल डाला अर फूल।
सहन करण तरवर सदा, सरणागत रिख सूल।।120।।

झट काटै जण काम सूं, फट तोड़ै फल फूल।
जीवै ओरां हित जगत, आछौ विटप उसूल।।121।।

जीव चराचर नै जबर, देवै सरणौ देख।
ऊरण द्वुम औसांण सूं, हुवै जीवन ना हेक।।122।।

मगां धरम मरजाद रै, हालण द्वुम हरमेस।
करिया धारण कालजै, अवनी रा उपदेस।।123।।

बरसालौ घर बरसियौ, हरियाली घर होय।
बिरछ घास बढ़बा निमत, जबर आखथा जोय।।124।।

घास बिरछ री मिलणागत, करै कालजै कोड।
लागी बढ़बा हितलगन, हाची होडा होड।।125।।

हिलै मिलै ऐ हेत सूं, अपणायत आधीन।
सहजोगी बणिया समठ, ल्याकत रूंखां लीन।।126।।

घास घणेरा घेरिया, तरवर करबा तंग।
बिरछ धार धीरप बधै, आछापणौज अंग।।127।।

घास धार लोनी गरज, उंतावल में आय।
छितरू लारै घोडनै, झपकै ऊंचौ जाय।।128।।

घास बिचै साचौ घणौ, तरवर चिलकै तंत।
आभ जियां दीखै अवस, महालं बीच महंत।।129।।

उडगण बिच नभ उडपती, जबरी आभा जेम।
घास हूंत घिरियां घणी, तारीफां द्वुम तेम।।130।।

सभा विचालै सभापत, गोप्यां मझ गोपाल।
आभतियां तरवर अखूं, हेत घास हरियाल।।131।।

घास बिचै सोभा गिणत, तरवर पाई तेम।
जड़िया नग माणक जियां, हाचै गहणै हेम।।132।।

कुराछिंकी कांटी भुरट, घामण झेरण धौब।
तेवड़ मकड़ै तांतणै, मोथौ बेकस मौब।।133।।

कागाबाटी चामकस, साटीगत सैंजोर।
लेलर कूक़ड लांपलौ, घास कुत्ती घमघोर।।134।।

चंदलाई डचाबड़ौ, डिगै डाबड़ौ डेंण।
ऊभा बिरछ उडीक में, खींप गोखरूं खेंण।।135।।

फूल्यौ नैणा फूटणौ, पसरै ऊंदर पूंछ।
घास चिड़ी चाबौहिरण, आया बिरछां ऊंच।।136।।

बेकरियौ कूमट बुई, लूणी तूंबा लोर।
सिणयिौ सेवण बनसपत, हाचा लेत हिलोर।।137।।

थलचर जलचर थाविया, ोसरी नभचर सींच।
बरखा रै कारण विविध,जलमै लाखूं जीव।।138।।

झोटां बरसालै जबर, नाखै पोटां नीर।
छितरू छोटा छावियां, गोटां दै हमगीर।।139।।

पीवम पांणी पालरौ, तावड़ ऊपर तेज।
रूंख बढ़ंता रात दि,न जिका कैर क्यूं जेज।।140।।

खितरू नैनी खेजड़ी, ऊगी थलवट आस।
बड़लौ बांवल बोरडी, बडसावण विसवास।।141।।

इरणी गूंदी आमली, फसरै कैयार फोग।
वाल्हा लगै वसुन्धरा, सच बिरखां संजोग।।142।।

आक नीम्ब ओरं़डियो, सिरस पींवली जाल।
राजी गूगल रोहिड़ौ, मचिया घर कसुत माल।।143।।

बरसालै ढालै विविध, ऊगै रूंख अलेख।
पनपै बढवै पांगरै, निरगैदासती नेक।।144।।

खेतां रेतां खादरां, परबत ताल पठार।
माठां घाटां मांयनै,करै रूंखड़ा कार।।145।।

थाट पाट घण थलवटां, पाक्यां खेतां पूंख।
बरसालौ बीतावियौ, रूपालौ सिसु रूंख।।146।।

मारग गौचर मारड़ौ, नामी फलै निसंक।
माठां मांय मुरायील, बाड़ पणै बणै तन बंक।।147।।

सरदी थलवट संचरै, पट काती खुल पैल।
भेलवाड द्वुम भांगिया, ठोकर ध्रावां ठैल।।148।।

गिटगा सागै घास रहै, केई पसु कलदात।
ऐ अलेखूं उजाड़िया, पसुवां सिसु तर पात।।149।।

उपजावै अनुराग सूं, रसा रूंख हित रास।
बचै कोइकसा बिरछ, बाकी हुवै बिणास।।150।।

मिगसर पी रै मांयनै, सरदी रौ सरणाट।
धूजै ऊभौ सुतधरा, झेलै सरदी झाट।।151।।

दावै दाझै एम द्वुम, धार्यां मन मां धाप।
तिरबा ध्रुव फैलाद तन, जपै तपै जिम जाप।।152।।

बिन गाभां जिम बालकां, ओपै नाहीं अंग।
तेमहईम पानां तणौ, नागौ लगै निनंग।।153।।

फलो कली कीकर फबै, रुत सरदो री राड़।
बिन पानां ऊभा विविध, जागां जांगां झाड़।।154।।

आई बसंत ओकखग, छाई अंगां छाप।
काढी नूींवी कूंपलां, आपै बिरछ अनाप।।155।।

रितु राजा ताजा रसां, गाजां बाजां घूम।
न्यू झाझ निंध्यावरत, धरा मचाई घूम।।156।।

कार हुवौ बेकार रौ, अद्वीकुट असंग।
रालक ग्रीखम रोलिया, तना रुपकां तंग।।157।।

माटो जलवायु महती, जीवावै द्वुम जीव।
करमी पर दोरी किती, सिसुपण तरवर सींव।।158।।

रूंख रौ जोबन
जोबनियौ सबरौ जबर, खलक खबर लै खास।
सबर नहीं व्है इण समै, दबर रहै ना दास।।159।।

उन्नत अवरउमाव री, जोबन ऊमर जांण।
करवा लूंठा कमाड़ा, तंत दहै मन तांण।।160।।

घारै सो ही कर धरा, कठन बपडप्पण काम।
हीमत नांही हारणौ, हरखै जोबन हाम।।161।।

थाटां पाटां थाविया, प्रभलाठां परवांण।
औजोबन आणंद रौ, जीवन चराचर जांण।।162।।

गरबीजै जोबन घमा, ऊंचौ मुख आकास।
लुलै बिरछ जोबन लियां, खिमता वालौ खास।।163।।

जोबन मां नर जांणनै, घालै ओरां घात।
पर उपकारी बिरछ पथ, हिलै बुलावण हाथ।।164।।

जोबन ओपै जीवड़ां, हेत भलाई हाम।
मुढ्ढ गमावै माजनौ, कर करखोटा काम।।165।।

तोख उछा मत तींवणां, तीजी खोटी तांय।
सोजी राखी सुद विरत, जोबन सेवट जाय।।166।।

नेकी आछाई नखै, आछी फलवै आस।
नकटाई बदनीत सूं, नेगम जीवम नास।।167।।

कागां गिरज कुमाणसां, जोबन तलै तमाम।
बिरछां रौ जोबन भलौ, कैयां आवै काम।।168।।

फल खावै छायां फलज, लोग बिसाई लेत।
दरखत जोबन देखिया,ं हरखै जीवां हेत।।169।।

कतरा फिरगा कातरा, नां लट्टां सैनांण।
पूगै हांण न पैदली, जोबन रूंखां जांण।।170।।

रासअसव डालां रमै, पत्तां पत्तां पूग।
हाजर जीव हजार हित, सदली रखै न सूग।।171।।

फिरै चढ़ै चौफेर ही, गूजरियां घरणाट।
निबालं नै ऐ नावड़ै, दहै न सबलां दाट।।172।।

जोबनिया डाला जबर, मेली जड़ मजबूत।
आंधी बिरखा री अबै, करै रूंखडा कूंत।।173।।

खारी फंफेड़ण खपै, आंधी भारी आय।
रूंख वीर पग रोपिया, जोबन भाव जताय।।174।।

त्यारी जोबन तरवरां, हिवडै धारी हाम।
रे ऊभा पग रोप नै, सतरू आंधी साम।।175।।

तपती बलती तावड़ौ, हाचा करै हिरान।
तपसी ज्यूं ऊभौ तरू, घर हीये मझ ध्यान।।176।।

ओरां नै दै आसरौ, सहवै खुद संताप।
धिन धिन रे थारौ धरम, सुतधर बड मा बाप।।177।।

अड़वड़ता पत्तां अठै, मछरां हवा मिझांन।
रमता हरियल रूंखड़ा, पलकै लीला पान।।178।।

पूगण जड़ां पताल मां, अड़ण बिरछ आकास।
जोबन हीमतजोर री, सबल रूंख साबास।।179।।

सर करवां रूंखा सका, वध वध उठै वसूतल।
सदल सूर अड़ सामनै, धारै अंधड़ धूल।।180।।

वाल कावल रूप वस, पूर भंज मां पोय।
रिख जन बिरछ समाधरत, करै न परवा कोय।।181।।

तावड़ पूरी तेबड़ै, अंधारी ओटाल।
अडिग विटप ऊभौ अखै, झिलै न सूंटै जाल।।182।।

कुसमद रूपी कांमणी, लियां सील लजवंत।
डूंज कबज करवा डूलै, कुबदी जीव कुलंत।।183।।

दलदर डूंज दिखावियौ, विपदारूपी वार।
पण आवै न पजाव मां, दीपै द्वुम दातार।।184।।

पत्री रौ मायतपणौ, आसा बांधै ओर।
बीजां रिच्छा हित बणै, झूंपण फूलां जोर।।185।।

पूरम धिरत पंखूडियां, फूल रयौ चौफेर।
बीज विकसियौ बीच मां, खितरू मायत खेर।।186।।

फूलां लदिया घण फबै, वेला विटप वसंत।
बिरछ पुकारै बंधवां, तेवड़ नेहां तंत।।187।।

मधुमाखी फूंदी भंवर, धरसुत राखै मेल।
रे दहै चकारा रसिक, करता फूलां केल।।188।।

रसिया सगला छै रसा, भायां रस घण भेद।
सर मांही सै फल रया, उर मां लिया उमेद।।189।।

भीतर सगती द्वुम भरै, तपता संकट ताप।
करण विणास मुकाबलौ, समरथ आपौ आप।।190।।

आयौ आवै आवसी, वसुधा पर बदलाव।
जणिमांही द्वुम झूंझती, ऊभौ करै उपाय।।191।।

बेकामू बागावियौ, कामू वरण करेह।
वसुधा रै बदलाय रौ, खातौ रूंखखरेह।।192।।

सफल हुवौ विपदा समै, अडिग तरू आपांण।
अंग अंग अंकित इयै, समरति चरि सैनांण।।193।।

जड़ दिढ़ तौ पकड़ी जमीं, सिर सोधै आलोक।
दानरूप साखां दवै, लेखै छायां लोक।।194।।

कम कणसूं जुड़ियौ धरा, धीरप दिढ़ता धार।
बूतै जांणीकार व्रख, करै मेल स्वीकार।।195।।

हेतालू अर हेजला, पूर निभावै प्रीत।
गीतां मां गेलीजणां, सुणै रूंख संगीत।।196।।

जांत पांत भेद न जठै, सब ही एक समान।
कांण कुरब राखै अवस, मरजादा द्वुम मान।।197।।

लेतौ रहवै लोक मां, सोरा दोरा सास।
असा मां फफलतौ इला, नी व्है रूंख निरास।।198।।

सेवा कर संसार री, देवै मेवा दान।
घणियां धिन धिन सुतधरा, खरा लाभ री खान।।199।।

बसंत
वेला पतझड़ बीतियां, रे आयौ रितुराज।
काढ़ै निरमल कूंपलां, अद्रीरालक आज।।200।।

चन्दा झाझी चांदणी, पलकै निरमल पान।
गलै लगाई गोरड़ी, साजन घण सनमान।।201।।

पन्ना 24

 

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